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Nida Fazli Poetry

Nida Fazli Poetry: निदा फ़ाज़ली ने 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में जन्म लिया था, लेकिन उनका बचपन ग्वालियर में बीता। 1964 में, वे नौकरी की तलाश में मुंबई गए और वहीं रह गए। मुंबई में रहते हुए, उन्होंने टीवी और फिल्मों के लिए लिखा और उर्दू की कई साहित्यिक पत्रिकाओं में लेख लिखा।

आइए पढ़ते हैं हिंदी-उर्दू के प्रसिद्ध शायर और गीतकार निदा फ़ाज़ली के प्रसिद्ध शेर, जो भावनाओं को व्यक्त करते हैं..।

महान आधुनिक शायर और फ़िल्म गीतकार निदा फ़ाज़ली का नाम आते ही पहली गज़ल याद आती है, “कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं ज़मीं कहीं आसमां नहीं मिलता”। उन्हें हिंदी-उर्दू के उन चंद अद्भुत शायरों और गीतकारों में गिना जाता है, जिनकी हर पंक्ति अनायास ही लफ्ज़ों की जन्नत में खींच लेती है।

Sher, ghazal, and Nazm are all included in the Nida Fazli Shayari collection, which will be available in Hindi and English. Dive into the Shayari written by Nida Fazli, and remember to save the ones you like the most.

Nida Fazli Poetry

Latest Nida Fazli Poetry

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफर सदियों तक
किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते हैं कि किस राहगुज़र के हम हैं

गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम
हर क़लमकार की बेनाम खबर के हम हैं।

Latest Nida Fazli Poetry

गोटे वाली लाल ओढ़नी साथ में चोली-घाघरा
उसी से मैचिंग करने वाला छोटा-सा इक नागरा

छोटी-सी ये शॉपिंग थी या कोई जादू-टोना
लंबा-चौड़ा शहर अचानक बनकर एक खिलौना

इतिहासों का जाल तोड़ के पगड़ी दाढ़ी
ऊँट छोड़ के आ से अम्माँ

ब से बाबा बैठा बाँच रहा था
पाँच साल की बच्ची बनकर
जयपुर नाच रहा था…!

Latest Nida Fazli Poetry

कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है

हमसे पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी
हमने भी इस शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है

उससे बिछड़े बरसों बीते लेकिन आज न जाने क्यों
आँगन में हँसते बच्चों को बे-कारण धमकाया है

कोई मिला तो हाथ मिलाया कहीं गए तो बातें की
घर से बाहर जब भी निकले दिन भर बोझ उठाया है

Nida Fazli Poetry in hindi

Nida Fazli Poetry

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुकद्दर मेरा
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा

किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से
हर जगह ढूंढता फिरता है मुझे घर मेरा

एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा

मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे
जगाता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा

आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर
आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा।

Nida Fazli Poetry

कहीं छत थी, दीवारो-दर थे कहीं मिला मुझको घर का पता देर से
दिया तो बहुत ज़िन्दगी ने मुझे मगर जो दिया वो दिया देर से

हुआ न कोई काम मामूल से गुजारे शबों-रोज़ कुछ इस तरह
कभी चाँद चमका ग़लत वक़्त पर कभी घर में सूरज उगा देर से

कभी रुक गये राह में बेसबब कभी वक़्त से पहले घिर आयी शब
हुए बन्द दरवाज़े खुल-खुल के सब जहाँ भी गया मैं गया देर से

ये सब इत्तिफ़ाक़ात का खेल है यही है जुदाई, यही मेल है
मैं मुड़-मुड़ के देखा किया दूर तक बनी वो ख़मोशी, सदा देर से

सजा दिन भी रौशन हुई रात भी भरे जाम लगराई बरसात भी
रहे साथ कुछ ऐसे हालात भी जो होना था जल्दी हुआ देर से

भटकती रही यूँ ही हर बन्दगी मिली न कहीं से कोई रौशनी
छुपा था कहीं भीड़ में आदमी हुआ मुझमें रौशन ख़ुदा देर से

Nida Fazli Poetry

दिन सलीके से उगा रात ठिकाने से रही
दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही।

चंद लम्हों को ही बनती हैं मुसव्विर आँखें
ज़िन्दगी रोज़ तो तसवीर बनाने से रही।

इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शमअ जलाने से रही।

फ़ासला, चाँद बना देता है हर पत्थर को
दूर की रौशनी नज़दीक तो आने से रही।

शहर में सबको कहाँ मिलती है रोने की जगह
अपनी इज्जत भी यहाँ हँसने-हँसाने में रही।

New Nida Fazli Poetry

Best Nida Fazli Poetry

धूप से निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो

वो सितारा है चमकने यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो

पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं
अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो

फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो

Best Nida Fazli Poetry

उठके कपड़े बदल, घर से बाहर निकल
जो हुआ सो हुआ
रात के बाद दिन, आज के बाद कल
जो हुआ सो हुआ

जब तलक साँस है, भूख है प्यास है
ये ही इतिहास है
रख के काँधे पे हल, खेत की ओर चल
जो हुआ सो हुआ

खून से तर-ब-तर, करके हर रहगुज़र
थक चुके जानवर
लकड़ियों की तरह, फिर से चूल्हे में जल
जो हुआ सो हुआ

जो मरा क्यों मरा, जो जला क्यों जला
जो लुटा क्यों लुटा
मुद्दतों से हैं गुम, इन सवालों के हल
जो हुआ सो हुआ

मन्दिरों में भजन मस्जिदों में अज़ाँ
आदमी है कहाँ ?
आदमी के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल
जो हुआ सो हुआ

Best Nida Fazli Poetry

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफर सदियों तक
किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
सोचते रहते हैं कि किस राहगुज़र के हम हैं

गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम
हर क़लमकार की बेनाम खबर के हम हैं।

Best Nida Fazli Poetry

New  Nida Fazli Poetry

जो कहीं था ही नहीं उसको कहीं ढूंढना था
हमको इक वहम के जंगल में यकीं ढूंढना था

सब के सब ढूंढते फिरते थे बन के हुजूम
जिस को अपने मे कहीं अपने तईं ढूंढना था

जुस्तजू का इक अजब सिलसिला ता-उम्र रहा
ख़ुद को खोना था कहीं और कहीं ढूंढना था

नींद को ढूंढ लाने की दवाएं थीं बहुत
काम मुश्किल तो कोई ख़्वाब हसीं ढूंढना था

दिल भी बच्चे की तरह ज़िद पे अड़ा था अपना
जो जहां था ही नहीं उस को वहीं ढूंढना था

हम भी जीने के लिए थोड़ा सुकूं थोड़ा सा चैन
ढूंढ सकते थे मगर हमको नहीं ढूंढना था।

New  Nida Fazli Poetry

कोई फ़रियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे
तूने आँखों से कोई बात कही हो जैसे

जागते जागते इक उम्र कटी हो जैसे
जान बाकी है मगर साँस रूकी हो जैसे

जानता हूँ आपको सहारे की ज़रूरत
नहीं मैं तो सिर्फ़ साथ देने आया हूँ

हर मुलाक़ात पे महसूस यही होता है
मुझसे कुछ तेरी नज़र पूछ रही हो जैसे

राह चलते हुए अक्सर ये गुमां होता है
वो नज़र छुप के मुझे देख रही हो जैसे

एक लम्हे में सिमट आया है सदियों का
सफ़र ज़िंदगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो जैसे

इस तरह पहरों तुझे सोचता रहता हूँ मैं
मेरी हर साँस तेरे नाम लिखी हो जैसे।

New  Nida Fazli Poetry

ये कैसी कशमकश है जिंदगी में
किसी को ढूंढते हैं हम किसी में

“जो खो जाता है मिल कर जिंदगी में
गज़ल है नाम उसको शायरी में

निकल आते हैं आंसू हंसते हंसते ये
किस ग्रम की कसक है हर खुशी में

कहीं चेहरा, कहीं आंखें, कहीं लब
हमेशा एक मिलता है कई में

चमकती है अंधेरों में ख़ामोशी
सितारे टूटते हैं रात ही मैं

सुलगती रेत में पानी कहां था
कोई बादल छुपा था तिश्नगी में

बहुत मुश्किल है बंजारा मिज़ाज़ी
सलीका चाहिए आवारगी में.!

Top Nida Fazli Poetry

Nida Fazli Poetry

ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में

शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में

रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे
धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में

जाने किस का ज़िक्र है इस अफ़साने
में दर्द मज़े लेता है जो दोहराने में

दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला
है। किस की आहट सुनता हूँ वीराने में

हम इस मोड़ से उठ कर अगले मोड़
चले उन को शायद उम्र लगेगी आने में.!

Nida Fazli Poetry

बदला न अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

दुनिया न जीत पाओ तो हारो न ख़ुद को तुम
थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे

अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी
हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे

गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे

Nida Fazli Poetry

गरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला
चिड़ियों को दाना, बच्चों को गुड़धानी दे मौला

दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है
सोच समझवालों को थोड़ी नादानी दे मौला

फिर रोशन कर ज़हर का प्याला चमका नई सलीबें
झूठों की दुनिया में सच को ताबानी दे मौला

फिर मूरत से बाहर आकर चारों ओर बिखर जा
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला

तेरे होते कोई किसी की जान का दुश्मन क्यों हो
जीने वालों को मरने की आसानी दे मौला

Latest Nida Fazli Poetry

New Nida Fazli Poetry

होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िन्दगी क्या चीज़ है

उन से नज़रें क्या मिली रोशन फिजाएँ हो गईं
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है

ख़ुलती ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शायरी
झुकती आँखों ने बताया मयकशी क्या चीज़ है

हम लबों से कह न पाये उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है

New Nida Fazli Poetry

अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये

जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं
उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाये

बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये

ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में
और कुछ दिन यूँ ही औरों को सताया जाये

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये

New Nida Fazli Poetry

अब खुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला

हर बेचेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा
जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला

उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आँचल में
ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला

इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया
कोई जल्दी में कोई देर में जाने वाला

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Madhav Jha

Madhav Jha loves blogging and is an expert in search engine optimisation (SEO). He loves writing about Shayari, Status, and so on.

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