9 नवंबर 1877 को महान शायर अल्लामा इकबाल का जन्म पंजाब, पाकिस्तान में हुआ था। 21 अप्रैल 1938 देहांत हो गया था। इकबाल की रचनाएं हमेशा उम्मीदों के साथ जीवन में नए रास्ते खोजती रहीं। इनकी शायरी में बहुत से लोगों को अपना अक्श दिखाई देता है। इनकी उर्दू और फ़ारसी शायरी को आज की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है।
“सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा” या “दुआ बनके तमन्ना मेरी” का जिक्र कीजिए। इकबाल हर जगह अपने शब्दों से लोगों को एकजुट करते हैं।
इक़बाल ने अपने जीवनकाल में कई लोकप्रिय लेख लिखे, जिनमें अधिकांश कवितायेँ थीं। उनका मुख्य ध्यान राजनीति, अर्थशास्त्र, इतिहास, दर्शन और धर्म पर विद्वानों के लेखों पर था। वह असरार-ए-खुदी सहित कविता के लिए जाना जाता है, जो नाइटहुड, रुमुज-ए-बेखुदी और बंग-ए-दारा लाए। 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद उनका नाम पाकिस्तान के राष्ट्रीय कवि दिया गया।
उन्हें “मुफक्किर-ए-पाकिस्तान” (पाकिस्तान के विचारक) और “हकीम-उल-उम्मत” (उम्मा के ऋषि) भी कहा जाता है। ये कविता उर्दू, हिंदी और पारसी भाषा में लिखी गई थीं। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं था कि वे सिर्फ ये तीन भाषा बोलते थे। इक़बाल अंग्रेजी बोलने में भी अच्छे थे। 1922 में किंग जॉर्ज पांचवें ने मोहम्मद इक़बाल को ‘नाइट बैचलर’ का सम्मान दिया।
यहाँ अल्लामा इक़बाल की दो पंक्ति की शायरी दी गई है. अगर आपको अच्छा लगे तो कृपया सर मुहम्मद इक़बाल की शायरी को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें।
अल्लामा इक़बाल (Allama Iqbal) की कुछ लोकप्रिय उर्दू और हिंदी शायरी आज आपको मिल जाएगी।
Table of Contents
Allama Iqbal Shayari
तिरे सीने में दम है दिल नहीं है
तिरा दिल गर्मी-ए-महफ़िल नहीं है
गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है |
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है |
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतज़ार देख
इक़रार ऐ मुहब्बत ऐहदे ऐ-वफ़ा सब झूठी सच्ची बातें हैं इक़बाल.
हर शख्स खुदी की मस्ती में बस अपने खातिर जीता है |
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं |
औकात में रखना था जिसे
गलती से दिल में रखा था उसे |
Allama Iqbal Shayari in hindi
ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
तड़प जा पेच खा-खा कर बदल जा
नहीं साहिल तिरी किस्मत में ऐ मौज !
उभर कर जिस तरफ चाहे निकल जा !
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब,
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो।
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख |
मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने
मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका |
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ |
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे नूरी पर रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है, चमन में दीदावर पैदा |
New Allama Iqbal Shayari
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ |
फूलों की पत्तियों से कट सकता है हीरे का जिगर
मर्दे नादान पर कलाम-ऐ-नरम-ऐ-नाज़ुक बेअसर |
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं |
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे
हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर |
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी |
बे-ख़तर_कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी |
Top Allama Iqbal Shayari
तेरी दुआ से कज़ा तो बदल नहीं सकती
मगर है इस से यह मुमकिन की तू बदल जाये
तेरी दुआ है की हो तेरी आरज़ू पूरी
मेरी दुआ है तेरी आरज़ू बदल जाये |
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है |
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है |
अनोखी वजा हैं, सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या रब रहने वाला हैं।
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से
कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में |
तेरे आज़ाद_बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी |
Best Allama Iqbal Shayari
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं |
मैं रो रो के कहने लगा दर्द-ए-दिल,
वो मुंह फेर कर मुस्कुराने लगे।
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
मैं ही तो एक राज़ था सीना-ए-काएनात में |
मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने
मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका |
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है
शायद कि उतर जाए तिरे दिल में मिरी बात |
इस दौर की ज़ुल्मत में हर क़ल्ब इ परेशान को,
वो दाग़ इ मुहब्बत दे जो चाँद को शर्मा दे।
Latest Allama Iqbal Shayari
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर |
अनोखी वज़्अ’ है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं |
बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी
मुझे बता तो सही और काफ़िरी क्या है |
जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में
बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते |
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में |
अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है |
Imran Pratapgarhi Shayari >>>
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