Top 50+ Kabir Ke Dohe In Hindi

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kabir ke dohe

Kabir Ke Dohe: कबीरदास का जन्म १५वीं शताब्दी में सावंत १४५५ में राम तारा काशी में हुआ था। उनका गुरु संत आचार्य रामानंद था। कबीरदास की पत्नी को “लोई” कहा जाता था।

हिंदी साहित्य में निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि कबीर दास थे। उनका पुत्र कमाल और पुत्री कमाली था। कबीर दास का बोल साखी, संबंध और रमैनी में लिखा गया है। कबीर ईश्वर को मानते थे और धार्मिक कार्यों का विरोध करते थे।

कबीर दास स्कूल में नहीं पढ़े थे, लेकिन भोजपुरी, हिंदी और अवधी में अच्छी पकड़ रखते थे। कबीर के दोहे की सूची को इस ब्लॉग में पढ़ें।

संत कबीर दास ने हिंदी साहित्य जगत को बहुत कुछ दिया है। उनके दोहे देश भर में लोकप्रिय हैं। हम आज कबीरदास जी के लोकप्रिय दोहों का एक छोटा सा संकलन लाए हैं, जो आपको जीवन के बारे में बहुत कुछ सिखाएंगे। आप प्रत्येक दोहे में बहुत गहरा अर्थ पाएंगे। आशा है कि आपको ये कबिर के दोहे अच्छे लगेंगे।

kabir ji ke dohe in hindi

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साईं इतना दीजीए, जामे कुटुंब समाए
मै भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए।

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कबीर मरनां तहं भला, जहां आपनां न कोइ।
आमिख भखै जनावरा, नाउं न लेवै कोइ॥

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क्या भरोसे देह का, बिनस जाय क्षण माही।
सांस सांस सुमिरन करो, और जतन कछु नाही॥

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तूँ तूँ करता तूँ भया, मुझ मैं रही न हूँ।
वारी फेरी बलि गई, जित देखौं तित तूँ ॥

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गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पाय
बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविंद दियो बताय।

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ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।

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मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा।
तेरा तुझकौं सौंपता, क्या लागै है मेरा॥

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मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई.
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई.

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कलि का बामण मसखरा, ताहि न दीजै दान।
सौ कुटुंब नरकै चला, साथि लिए जजमान॥

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हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तासका, जे चले हमारे साथि॥

कबीर के दोहे

हिंदी साहित्य में निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि कबीर दास थे। उनका पुत्र कमाल और पुत्री कमाली था। कबीर दास का बोल साखी, संबंध और रमैनी में लिखा गया है। कबीर ईश्वर को मानते थे और धार्मिक कार्यों का विरोध करते थे।

कबीर दास स्कूल में नहीं पढ़े थे, लेकिन भोजपुरी, हिंदी और अवधी में अच्छी पकड़ रखते थे। कबीर के दोहे की सूची को इस ब्लॉग में पढ़ें।

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दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।

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सतगुरु हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग।
बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥

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बैद मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम आधार॥

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कबीर माया पापणीं, हरि सूँ करे हराम।
मुखि कड़ियाली कुमति की, कहण न देई राम॥

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बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।

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कबीर कुआ एक हे,पानी भरे अनेक।
बर्तन ही में भेद है पानी सब में एक ।।

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जिस मरनै थै जग डरै, सो मेरे आनंद।
कब मरिहूँ कब देखिहूँ, पूरन परमानंद॥

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धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।

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मुला मुनारै क्या चढ़हि, अला न बहिरा होइ।
जेहिं कारन तू बांग दे, सो दिल ही भीतरि जोइ॥

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नर-नारी सब नरक है, जब लग देह सकाम।
कहै कबीर ते राम के, जैं सुमिरैं निहकाम॥

kabir das ji ka chitra (Images for kabir ke dohe)

15वीं शताब्दी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत कबीर दास (1398-1518) थे। कबीर सागर, संत गरीब दास के सतगुरु ग्रंथ साहिब और सिख धर्म के ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में उनके छंद पाए जाते हैं, जो हिंदू धर्म के भक्ति आंदोलन को प्रभावित करते हैं।

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माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

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मन मथुरा दिल द्वारिका, काया कासी जाणि।
दसवाँ द्वारा देहुरा, तामै जोति पिछांणि॥

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कबीरा तेरे जगत में, उल्टी देखी रीत ।
पापी मिलकर राज करें, साधु मांगे भीख ।

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बेटा जाए क्या हुआ, कहा बजावै थाल।
आवन जावन ह्वै रहा, ज्यौं कीड़ी का नाल॥

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चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोए
दुई पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।

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माटी कहे कुमार से, तू क्या रोदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।

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जाका गुर भी अंधला, चेला खरा निरंध।
अंधा−अंधा ठेलिया, दून्यूँ कूप पड़ंत॥

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काबा फिर कासी भया, राम भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठ कबीर जीम॥

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तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी ऑखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

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माया मुई न मन मुवा, मरि-मरि गया सरीर।
आसा त्रिष्णाँ नाँ मुई, यौं कहै दास कबीर॥

Kabir Das Ke Dohe In Hindi

ज्ञानाश्रयी शाखा (मध्यकालीन भक्ति-साहित्य की निर्गुण धारा) का अत्यंत महत्वपूर्ण और विद्रोही संत-कवि।

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दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

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नैनाँ अंतरि आव तूँ, ज्यूँ हौं नैन झँपेऊँ।
नाँ हौं देखौं और कूँ, नाँ तुझ देखन देऊँ॥

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जब तूं आया जगत में, लोग हंसे तू रोए
ऐसी करनी न करी पाछे हंसे सब कोए।

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साँच बराबरि तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै साँच है ताकै हृदय आप॥

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जहाँ न जाको गुन लहै, तहाँ न ताको ठाँव ।
धोबी बसके क्या करे, दीगम्बर के गाँव ॥

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पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

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सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै॥

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कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीड़
जो पर पीड़ न जानता, सो काफ़िर बे-पीर

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कबीर यहु घर प्रेम का, ख़ाला का घर नाँहि।
सीस उतारै हाथि करि, सो पैठे घर माँहि॥

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प्रेम न खेतौं नीपजै, प्रेम न दृष्टि बिकाइ।
राजा परजा जिस रुचै, सिर दे सो ले जाइ॥

Famous Kabir Ke Dohe

संत कबीर दास के दोहे आज भी मार्गदर्शक हैं। यहाँ पाठकों को कबीर के सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय दोहे प्रस्तुत किए गए हैं:

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जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।.

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अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ।
अति का भला न बरसना, अति की भली न घूप ।।

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मन के हारे हार हैं, मन के जीते जीति।
कहै कबीर हरि पाइए, मन ही की परतीति॥

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कस्तूरी कन्डल बसे मृग ढूढै बन माहि।
त्ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नहि।।

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कबीर तहां न जाइये, जहां जो कुल को हेत
साधुपनो जाने नहीं, नाम बाप को लेत

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हम भी पांहन पूजते, होते रन के रोझ।
सतगुरु की कृपा भई, डार्या सिर पैं बोझ॥

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जो तोकू कांता बुवाई, ताहि बोय तू फूल।
तोकू फूल के फूल है, बाको है तिरशूल।।

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अंषड़ियाँ झाँई पड़ी, पंथ निहारि-निहारि।
जीभड़ियाँ छाला पड्या, राम पुकारि-पुकारि॥

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हरि रस पीया जाँणिये, जे कबहूँ न जाइ खुमार।
मैमंता घूँमत रहै, नाँहीं तन की सार॥

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कबीर ऐसा यहु संसार है, जैसा सैंबल फूल।
दिन दस के व्यौहार में, झूठै रंगि न भूलि॥

kabir das ke dohe in hindi with meaning

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फल कारन सेवा करे, करे ना मन से काम।
कहे कबीर सेवक नहीं, चाहे चौगुना दाम।।

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चकवी बिछुटी रैणि की, आइ मिली परभाति।
जे जन बिछूटे राम सूँ, ते दिन मिले न राति॥

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नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए।
मीन सदा जल में रहे, धोय बास न जाए।

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जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहिं।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि॥

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कबीर प्रेम न चक्खिया,चक्खि न लिया साव।
सूने घर का पाहुना, ज्यूं आया त्यूँ जाव॥

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पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात.
एक दिना छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात.

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प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरूँ, प्रेमी मिलै न कोइ।
प्रेमी कूँ प्रेमी मिलै तब, सब विष अमृत होइ॥

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कबीर सतगुर ना मिल्या, रही अधूरी सीख।
स्वांग जाति का पहरी कर, घरी घरी मांगे भीख।।

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माली आवत देखि के, कलियाँ करैं पुकार।
फूली-फूली चुनि गई, कालि हमारी बार॥

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कबीर यहु जग अंधला, जैसी अंधी गाइ।
बछा था सो मरि गया, ऊभी चांम चटाइ॥

Kabir das ki Vani

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बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर.!

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सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं, तऊ हरि गुण लिख्या न जाइ॥

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तन की सौ सौ बनदिशे मन को लगी ना रोक
तन की दो गज कोठरी मन के तीनो लोक।

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साँई मेरा बाँणियाँ, सहजि करै व्यौपार।
बिन डाँडी बिन पालड़ै, तोलै सब संसार॥

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ढोंगी मित्र न पालिये सर्पिल जाकी धार,
नफरत भीतर से करे जख्मी करे हज़ार !!

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कबीर, कबीरा हरिके रूठते, गुरुके शरने जाय।
कहै कबीर गुरु रूठते, हरि नहिं होत सहाय।

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सब जग सूता नींद भरि, संत न आवै नींद।
काल खड़ा सिर ऊपरै, ज्यौं तौरणि आया बींद॥

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कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी |
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।।

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पाणी ही तैं पातला, धूवां हीं तैं झींण।
पवनां बेगि उतावला, सो दोस्त कबीरै कीन्ह॥

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सतगुर की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावण हार॥

kabir das quotes in hindi

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जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय ।
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय ॥

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काम बिगाड़े भक्ति को, क्रोध बिगाड़े ज्ञान।
लोभ बिगाड़े त्याग को, मोह बिगाड़े ध्यान।।

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चाकी चलती देखि कै, दिया कबीरा रोइ।
दोइ पट भीतर आइकै, सालिम बचा न कोई॥

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लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट ॥

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ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय ।
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ।

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बिरह जिलानी मैं जलौं, जलती जलहर जाऊँ।
मो देख्याँ जलहर जलै, संतौ कहा बुझाऊँ॥

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काम बिगाड़े भक्ति को, क्रोध बिगाड़े ज्ञान।
लोभ बिगाड़े त्याग को, मोह बिगाड़े ध्यान।।

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हाड़ जलै ज्यूँ लाकड़ी, केस जले ज्यूँ घास।
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास॥

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हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई।
बूँद समानी समुंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥

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परनारी पर सुंदरी, बिरला बंचै कोइ।
खातां मीठी खाँड़ सी, अंति कालि विष होइ॥

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