भगवद गीता के श्लोक हमें जीवन की सच्चाई से अवगत कराते हैं और सही मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। गीता में निहित ज्ञान हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी फल की चिंता किए करना चाहिए। Geeta Shlok in Hindi के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि जीवन में आने वाली चुनौतियों से घबराने के बजाय, धैर्य और आत्मविश्वास के साथ उनका सामना करना चाहिए।
श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट रूप से कहा है कि आत्मा अजर-अमर है और केवल शरीर नश्वर होता है। यह विचार हमें मृत्यु के भय से मुक्त करता है और हमें आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है। Bhagavad Gita Shlok in Hindi हमें सिखाते हैं कि भौतिक संसार की मोह-माया में फंसने के बजाय, आत्मिक शांति और ज्ञान की ओर अग्रसर होना चाहिए।
गीता में कर्म का विशेष महत्व बताया गया है। जीवन में सफलता उन्हीं को मिलती है जो बिना किसी स्वार्थ के कर्म करते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि “कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर,” जिसका अर्थ है कि हमें अपने प्रयासों पर ध्यान देना चाहिए, न कि उनके परिणामों पर। Best Geeta Shlok in Hindi with Meaning हमें यह प्रेरणा देते हैं कि परिश्रम और निष्ठा से किया गया कार्य हमेशा सकारात्मक परिणाम लाता है।
आज के समय में मानसिक शांति और आत्मविश्वास बनाए रखना कठिन होता जा रहा है। लेकिन गीता हमें सिखाती है कि सच्ची शांति केवल अपने मन को नियंत्रित करने और इच्छाओं को सीमित करने से प्राप्त होती है। जो व्यक्ति मोह-माया से दूर रहकर अपने कर्तव्य का पालन करता है, वही वास्तविक सुख का अनुभव कर सकता है। Geeta Ke Anmol Shlok को अपनाकर हम अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जा सकते हैं।
Table of Contents
- Geeta Shlok in Hindi – गीता के महत्वपूर्ण श्लोक
- Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi – अर्थ सहित महत्वपूर्ण श्लोक
- Geeta Shlok in Sanskrit with Meaning in Hindi – संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
- Bhagwat Geeta Shlok in Hindi – अर्थ सहित
- Best Geeta Shlok in Hindi with Meaning – श्रेष्ठ गीता श्लोक अर्थ सहित
- भगवद गीता श्लोक – अर्थ सहित संपूर्ण गीता श्लोक
- Geeta Shlok in Hindi with Meaning – जीवन के लिए प्रेरणादायक श्लोक
- Shrimad Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit – मूल संस्कृत श्लोक
- Bhagavad Gita Best Shlok with Explanation – सर्वोत्तम श्लोक व्याख्या सहित
- संस्कृत में भगवद गीता श्लोक अर्थ सहित
- प्रसिद्ध भगवद गीता श्लोक संस्कृत में अर्थ सहित – जीवन बदलने वाले श्लोक
- कर्म, भक्ति और ज्ञान से जुड़े संस्कृत श्लोक – भगवद गीता का संदेश
- Bhagwat Geeta Shlok in Hindi Images – सुंदर श्लोक चित्रों के साथ
- FAQ – Best Geeta Shlok in Hindi with Meaning
- भगवद गीता में कितने श्लोक हैं?
- भगवद गीता का सबसे प्रसिद्ध श्लोक कौन सा है?
- भगवद गीता के श्लोक पढ़ने से क्या लाभ होता है?
- क्या भगवद गीता केवल हिंदू धर्म के लिए है?
- भगवद गीता में किस प्रकार के योग बताए गए हैं?
- निष्कर्ष – Best Geeta Shlok in Hindi with Meaning
Geeta Shlok in Hindi – गीता के महत्वपूर्ण श्लोक
भगवद गीता के श्लोक जीवन को सही दिशा देने वाले अद्भुत ज्ञान के स्रोत हैं। इनमें कर्म, भक्ति, धर्म और आत्मज्ञान का सार समाहित है। Geeta Shlok in Hindi को पढ़कर हम अपने जीवन की चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं। श्रीकृष्ण के उपदेश हमें सिखाते हैं कि सच्चा सुख बाहरी चीज़ों में नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और सही कर्म में है।
गीता में बताया गया है कि “कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर”, जिसका अर्थ है कि हमें अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा से निभाना चाहिए। गीता के महत्वपूर्ण श्लोक यह दर्शाते हैं कि जीवन में सफलता और शांति प्राप्त करने के लिए हमें लोभ, मोह और अहंकार से मुक्त होकर कर्मयोग के मार्ग पर चलना चाहिए।
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Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi – अर्थ सहित महत्वपूर्ण श्लोक
भगवद गीता के श्लोक जीवन को सही दिशा दिखाने वाले अमूल्य उपदेश हैं। Bhagwat Geeta Shlok with Meaning in Hindi को पढ़कर हम जीवन, कर्म, भक्ति और आत्मज्ञान की गहरी समझ प्राप्त कर सकते हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निष्काम कर्म का संदेश दिया, जिससे हमें सीख मिलती है कि बिना फल की चिंता किए अपने कर्तव्यों का पालन करना ही सच्ची सफलता की कुंजी है।
श्रीकृष्ण कहते हैं – “जो हुआ, वह अच्छे के लिए हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छे के लिए हो रहा है, और जो होगा, वह भी अच्छे के लिए होगा।” यह श्लोक हमें सिखाता है कि जीवन में आने वाली कठिनाइयों से घबराने की बजाय, धैर्य और सकारात्मकता बनाए रखनी चाहिए।
अर्थ सहित महत्वपूर्ण श्लोक पढ़ने से न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि हमें सही निर्णय लेने की प्रेरणा भी मिलती है।

कृपया परयाऽऽविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत्।
अर्जुन उवाच – दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्॥अर्थ: अर्जुन भय और करुणा से व्याकुल होकर बोले – हे कृष्ण! युद्ध के लिए खड़े हुए अपने ही संबंधियों को देखकर मेरा मन विचलित हो रहा है।
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥अर्थ: आत्मा न जन्म लेती है और न ही मरती है। यह नित्य, शाश्वत और पुराण (सनातन) है। शरीर के नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥
अर्थ: नियत कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने से अच्छा है। यदि तुम कर्म नहीं करोगे, तो तुम्हारा जीवनयापन भी संभव नहीं होगा।

यज्ञार्थात् कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर॥
अर्थ: यज्ञ (परमार्थ) के लिए किए गए कर्म के अलावा अन्य सभी कर्म बंधन उत्पन्न करते हैं।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्॥
अर्थ: जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं स्वयं प्रकट होता हूँ।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
अर्थ: साधुओं के उद्धार, दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में अवतरित होता हूँ।

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते॥
अर्थ: योगयुक्त और आत्मसंयमी पुरुष, सभी जीवों में आत्मस्वरूप को देखने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति कर्म करता हुआ भी कर्म के बंधन में नहीं पड़ता।
उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
अर्थ: मनुष्य को अपने द्वारा स्वयं को उठाना चाहिए और स्वयं को पतन में नहीं डालना चाहिए, क्योंकि आत्मा ही उसका मित्र और शत्रु होती है।
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥
अर्थ: अनेक जन्मों के पश्चात ज्ञानी पुरुष मुझमें समर्पित होता है और यह जानता है कि ‘वासुदेव ही सर्वस्व हैं।
Geeta Shlok in Sanskrit with Meaning in Hindi – संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
भगवद गीता के श्लोक जीवन का गहरा ज्ञान प्रदान करते हैं और हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। Geeta Shlok in Sanskrit with Meaning in Hindi पढ़ने से हम श्रीकृष्ण के दिव्य उपदेशों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। संस्कृत श्लोकों का हिंदी अर्थ जानकर हम यह सीखते हैं कि कर्म, भक्ति और आत्मज्ञान से ही जीवन सफल होता है।
श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं –
“न जायते म्रियते वा कदाचिन्, नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।” (भगवद गीता 2.20)
इसका अर्थ है कि आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है, यह सदा अजर-अमर और शाश्वत रहती है। संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित पढ़ने से हमें यह समझ में आता है कि हमें मोह-माया से ऊपर उठकर आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानना चाहिए। यह ज्ञान हमें जीवन में शांति, धैर्य और आत्मविश्वास बनाए रखने की प्रेरणा देता है।

अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः॥
अर्थ: जो मनुष्य मृत्यु के समय मेरा स्मरण करता हुआ शरीर त्यागता है, वह निश्चित ही मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है।
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥
अर्थ: जो भक्त अनन्य भाव से मेरा चिंतन करते हैं और मेरी आराधना में लगे रहते हैं, उनका योग (प्राप्ति) और क्षेम (संरक्षण) मैं स्वयं करता हूँ।
इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर् नावमिवाम्भसि॥अर्थ: जिस व्यक्ति का मन चंचल और विषयों में भटकने वाले इन्द्रियों के पीछे भागता है, उसकी बुद्धि उसी प्रकार हर ली जाती है, जैसे तेज़ हवा जल में बहती हुई नौका को बहा ले जाती है।
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥अर्थ:धृतराष्ट्र बोले – हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्र होकर युद्ध के इच्छुक मेरे पुत्रों और पांडवों ने क्या किया?
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥
अर्थ: अनेक जन्मों के पश्चात ज्ञानी पुरुष मुझमें समर्पित होता है और यह जानता है कि ‘वासुदेव ही सर्वस्व हैं’।
उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
अर्थ: मनुष्य को अपने द्वारा स्वयं को उठाना चाहिए और स्वयं को पतन में नहीं डालना चाहिए, क्योंकि आत्मा ही उसका मित्र और शत्रु होती है।
Bhagwat Geeta Shlok in Hindi – अर्थ सहित
भगवद गीता के श्लोक जीवन, कर्म और आत्मज्ञान का मार्गदर्शन देते हैं। श्रीकृष्ण ने गीता में कर्मयोग, भक्ति और ज्ञान का महत्व समझाया है, जो आज भी प्रासंगिक है। Bhagwat Geeta Shlok in Hindi – अर्थ सहित पढ़ने से हमें यह सीख मिलती है कि हर परिस्थिति में अपने कर्तव्यों का पालन करना ही सच्ची सफलता की कुंजी है।
श्रीकृष्ण कहते हैं –
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” (भगवद गीता 2.47)
इसका अर्थ है कि हमें केवल अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन उसके परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए। भगवद गीता श्लोक अर्थ सहित पढ़कर हम समझ सकते हैं कि निष्काम कर्म का मार्ग अपनाने से ही सच्ची शांति और आत्मिक संतोष प्राप्त होता है।
Best Geeta Shlok in Hindi with Meaning – श्रेष्ठ गीता श्लोक अर्थ सहित
भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन देने वाली अमूल्य ज्ञान-संहिता है। इसके श्लोक हमें सही निर्णय लेने, कठिनाइयों में धैर्य रखने और अपने कर्मों को निस्वार्थ भाव से करने की सीख देते हैं। Best Geeta Shlok in Hindi with Meaning – श्रेष्ठ गीता श्लोक अर्थ सहित पढ़ने से हम श्रीकृष्ण के गहरे उपदेशों को सरलता से समझ सकते हैं।
श्रीकृष्ण कहते हैं –
“योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय। सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥” (भगवद गीता 2.48)
अर्थ: बिना किसी फल की चिंता किए अपने कर्मों को पूरे समर्पण और संतुलित मन से करना ही सच्चा योग है। श्रेष्ठ गीता श्लोक अर्थ सहित पढ़कर हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में सफलता और असफलता को समान रूप से स्वीकार करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करना ही सच्चा धर्म है।

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥
अर्थ: नियत कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने से अच्छा है। यदि तुम कर्म नहीं करोगे, तो तुम्हारा जीवनयापन भी संभव नहीं होगा।
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर॥
अर्थ: यज्ञ (परमार्थ) के लिए किए गए कर्म के अलावा अन्य सभी कर्म बंधन उत्पन्न करते हैं।
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः॥
अर्थ: असत् (अस्थायी) का कोई अस्तित्व नहीं है, और सत् (स्थायी) का कभी अभाव नहीं होता। तत्वदर्शी जनों ने इन दोनों के अंतर को समझा है।

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥
अर्थ: हे कुन्तीपुत्र! इंद्रियों और विषयों के संपर्क से उत्पन्न होने वाले सर्दी-गर्मी, सुख-दुःख आदि क्षणिक और अनित्य हैं; इसलिए, हे भारत, उन्हें सहन करो।
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते॥
अर्थ: हे पुरुषश्रेष्ठ! जो व्यक्ति सुख-दुःख में सम रहता है और जिसे ये व्याकुल नहीं करते, वह धीर पुरुष अमृतत्व के योग्य होता है।
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना॥
अर्थ: हे भारत! सभी प्राणी अव्यक्त (अदृश्य) से उत्पन्न होते हैं, मध्य में व्यक्त (दृश्य) होते हैं, और पुनः अव्यक्त में लीन हो जाते हैं; फिर इसमें शोक करने की क्या बात है?

आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनम् आश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्॥
अर्थ: कोई इसे आश्चर्य की तरह देखता है, कोई आश्चर्य की तरह बताता है, कोई आश्चर्य की तरह सुनता है, और कोई सुनकर भी इसे नहीं जानता।
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि॥
अर्थ: हे भारत! यह आत्मा सभी के शरीर में नित्य अवध्य (अविनाशी) है; इसलिए, तुम सभी प्राणियों के लिए शोक करने के योग्य नहीं हो।
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि।
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते॥
अर्थ: अपने स्वधर्म को देखकर भी तुम्हें विचलित नहीं होना चाहिए, क्योंकि क्षत्रिय के लिए धर्मयुक्त युद्ध से बढ़कर कोई श्रेष्ठ कर्म नहीं है।
भगवद गीता श्लोक – अर्थ सहित संपूर्ण गीता श्लोक
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” (भगवद गीता 2.47)
👉 अर्थ: हमें केवल अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। निष्काम कर्म ही सच्चा धर्म है।
“न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।” (भगवद गीता 4.38)
👉 अर्थ: इस संसार में ज्ञान से बढ़कर कुछ भी पवित्र नहीं है। सच्ची भक्ति और साधना से यह ज्ञान प्राप्त होता है।
👉 गीता श्लोक अर्थ सहित पढ़ने से हमें सही मार्गदर्शन और जीवन को संतुलित रखने की प्रेरणा मिलती है।

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः॥
अर्थ: मारे जाने पर तुम स्वर्ग प्राप्त करोगे, और विजय पाने पर पृथ्वी का राज्य भोगोगे; इसलिए, हे कुन्तीपुत्र, निश्चय करके युद्ध के लिए उठो।
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि॥
अर्थ: सुख-दुःख, लाभ-हानि, और जय-पराजय को समान मानकर, फिर युद्ध के लिए तत्पर हो जाओ; इस प्रकार तुम पाप को प्राप्त नहीं करोगे।
एषा तेऽभिहिता सांख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु।
बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि॥
अर्थ: अब तक मैंने तुम्हें सांख्य (ज्ञान) की दृष्टि से बुद्धि कही; अब योग (कर्म) की दृष्टि से सुनो, जिससे युक्त होकर, हे पार्थ, तुम कर्मबंधन को त्याग सकोगे।
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥
अर्थ: इस योग में न तो आरंभ का नाश है, न ही विपरीत फल का भय; यह थोड़ा सा भी धर्म महान भय से रक्षा करता है।
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन।
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्॥
अर्थ: हे कुरुनंदन! इस मार्ग में निश्चयात्मक बुद्धि एक ही होती है; लेकिन अनिश्चित बुद्धि वाले लोगों की बुद्धि बहुत शाखाओं वाली और अनंत होती है।
यावानर्थ उदपाने सर्वतः सम्प्लुतोदके।
तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः॥
अर्थ: जैसे चारों ओर से जल से भरे हुए सरोवर में एक छोटे कुएं की आवश्यकता नहीं रहती, वैसे ही सभी वेदों में जानने वाले ब्राह्मण के लिए (सर्वत्र) उतना ही प्रयोजन है।
Geeta Shlok in Hindi with Meaning – जीवन के लिए प्रेरणादायक श्लोक
भगवद गीता के श्लोक न केवल आध्यात्मिक ज्ञान देते हैं, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर सही निर्णय लेने की प्रेरणा भी देते हैं। श्रीकृष्ण के उपदेश हमें सिखाते हैं कि कठिनाइयों का सामना धैर्य और आत्मविश्वास से करना चाहिए। Geeta Shlok in Hindi with Meaning पढ़ने से हम जीवन में सकारात्मक सोच, सही कर्म और भक्ति का महत्व समझ सकते हैं।
✨ प्रेरणादायक गीता श्लोक:
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।” (भगवद गीता 6.5)
👉 अर्थ: हमें अपने आत्मबल से खुद को ऊपर उठाना चाहिए और निराशा से दूर रहना चाहिए। आत्मसंयम और सकारात्मक दृष्टिकोण से ही सफलता प्राप्त होती है।
भगवद गीता के श्लोक जीवन को नई दिशा देते हैं और हमें आत्मज्ञान एवं आत्मविश्वास की शक्ति प्रदान करते हैं।
Shrimad Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit – मूल संस्कृत श्लोक
श्रीमद भगवद गीता के मूल संस्कृत श्लोकों में गहन आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन के महत्वपूर्ण संदेश छिपे हैं। श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए ये उपदेश आज भी मानवता के लिए प्रेरणादायक हैं। Shrimad Bhagwat Geeta Shlok in Sanskrit का अध्ययन करने से हमें आत्मबोध, भक्ति और कर्मयोग का सही मार्गदर्शन मिलता है।
✨ एक महत्वपूर्ण संस्कृत श्लोक:
“न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥” (भगवद गीता 2.20)
👉 अर्थ: आत्मा न जन्म लेती है और न ही मरती है। यह नित्य, शाश्वत और अजर-अमर है। शरीर का नाश हो सकता है, लेकिन आत्मा कभी नष्ट नहीं होती।
मूल संस्कृत श्लोकों का अध्ययन करने से हमें गीता का शुद्ध ज्ञान प्राप्त होता है, जो हमें जीवन में सही दिशा और मानसिक शांति प्रदान करता है।

स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्॥
अर्थ: अर्जुन ने कहा: हे केशव, स्थिर बुद्धि वाले व्यक्ति (स्थितप्रज्ञ) की क्या पहचान है? समाधि में स्थित व्यक्ति कैसे बोलता है, कैसे बैठता है, और कैसे चलता है?
प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान्।
आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते॥
अर्थ: भगवान ने कहा: हे पार्थ, जब व्यक्ति मन में उत्पन्न सभी इच्छाओं को त्याग देता है और आत्मा में ही आत्मा के द्वारा संतुष्ट रहता है, तब उसे स्थिर बुद्धि (स्थितप्रज्ञ) कहा जाता है।
दुःखेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह:।
वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते॥
अर्थ: जो व्यक्ति दुःखों में विचलित नहीं होता, सुखों में जिसकी स्पृहा (आसक्ति) नहीं होती, जो राग, भय और क्रोध से रहित है, वह स्थिर बुद्धि मुनि कहलाता है।

य: सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्।
नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥
अर्थ: जो व्यक्ति सर्वत्र अनासक्त रहता है, शुभ और अशुभ को प्राप्त करके न तो हर्षित होता है और न द्वेष करता है, उसकी बुद्धि स्थिर है।
यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वश:।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥
अर्थ: जब यह व्यक्ति कछुए की तरह अपनी इंद्रियों को इंद्रिय विषयों से सर्वत्र समेट लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर होती है।
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिन:।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते॥
अर्थ: निराहार (संयमी) व्यक्ति के लिए इंद्रिय विषय तो दूर हो जाते हैं, लेकिन रस (आसक्ति) रहित नहीं होती; परंतु परमात्मा का साक्षात्कार करने पर यह रस भी समाप्त हो जाता है।

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चित:।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मन:॥
अर्थ: हे कुन्तीपुत्र, प्रयासरत विवेकी पुरुष का मन भी चंचल और बलवान इंद्रियाँ बलपूर्वक हर लेती हैं।
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्पर:।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥
अर्थ: उन सभी इंद्रियों को वश में करके, मेरे परायण होकर, युक्त होकर बैठे; जिसकी इंद्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है।
ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
अर्थ: विषयों का चिंतन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति उत्पन्न होती है; आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है; कामना से क्रोध उत्पन्न होता है।
Bhagavad Gita Best Shlok with Explanation – सर्वोत्तम श्लोक व्याख्या सहित
भगवद गीता के श्लोक न केवल आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि हमें सही जीवन जीने की राह भी दिखाते हैं। श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं और हर व्यक्ति के जीवन को प्रभावित कर सकते हैं। Bhagavad Gita Best Shlok with Explanation पढ़ने से हमें आत्मबोध, संयम और सही कर्म करने की प्रेरणा मिलती है।
✨ एक सर्वोत्तम गीता श्लोक:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥” (भगवद गीता 2.47)
👉 व्याख्या: श्रीकृष्ण इस श्लोक में बताते हैं कि हमारा अधिकार केवल कर्म करने पर है, न कि उसके परिणाम पर। हमें अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा और समर्पण से करना चाहिए, लेकिन फल की चिंता किए बिना। यह श्लोक हमें निष्काम कर्मयोग की शिक्षा देता है और सिखाता है कि सफलता या असफलता से परे रहकर अपने कार्य को पूरे मनोयोग से करना ही सच्ची सिद्धि है।
भगवद गीता के सर्वोत्तम श्लोक हमें जीवन में धैर्य, आत्मसंयम और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं। यह हमें सिखाते हैं कि सच्चा आनंद कर्म में समर्पित रहने में ही है, न कि उसके परिणाम की चिंता करने में।

क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
अर्थ: क्रोध से सम्मोह (मूढ़ता) उत्पन्न होती है; सम्मोह से स्मृति का भ्रम होता है; स्मृति भ्रम से बुद्धि का नाश होता है; और बुद्धि के नाश से व्यक्ति का पतन होता है।
रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन्।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति॥
अर्थ: राग और द्वेष से रहित, आत्मा के वश में इंद्रियों द्वारा विषयों का सेवन करने वाला, संयमी व्यक्ति प्रसाद (आंतरिक शांति) को प्राप्त करता है।
प्रसादे सर्वदु:खानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धि: पर्यवतिष्ठते॥
अर्थ: प्रसाद (शांति) में सभी दुःखों का नाश होता है; प्रसन्नचित्त व्यक्ति की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर हो जाती है।
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयत: शान्तिरशान्तस्य कुत: सुखम्॥
अर्थ: अयुक्त (असंयमी) व्यक्ति की बुद्धि स्थिर नहीं होती, न ही उसकी भावना (ध्यान) स्थिर होती है; भावना स्थिर न होने से शांति नहीं होती; अशांत व्यक्ति के लिए सुख कहाँ?
इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि॥
अर्थ: इंद्रियों के विषयों में विचरण करते समय, जिस मन को वे अपने पीछे खींच लेती हैं, वह मनुष्य की बुद्धि को वैसे ही हर लेता है जैसे जल में नाव को तेज हवा।
तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥
अर्थ: इसलिए, हे महाबाहो! जिसने अपनी इंद्रियों को सभी ओर से इंद्रिय-विषयों से वश में कर लिया है, उसकी बुद्धि स्थिर है।
संस्कृत में भगवद गीता श्लोक अर्थ सहित
भगवद गीता के संस्कृत श्लोक न केवल आध्यात्मिक ज्ञान का स्रोत हैं, बल्कि यह जीवन जीने की सही दिशा भी दिखाते हैं। इनमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म, कर्म और योग का गूढ़ ज्ञान दिया, जो आज भी हर व्यक्ति के लिए प्रासंगिक है। संस्कृत में भगवद गीता श्लोक अर्थ सहित पढ़ने से हमें आत्मज्ञान, मानसिक शांति और सही निर्णय लेने की प्रेरणा मिलती है।
✨ महत्वपूर्ण गीता श्लोक:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥” (भगवद गीता 2.47)
👉 अर्थ: हमें केवल अपने कर्म पर अधिकार है, लेकिन उसके फल पर नहीं। इसलिए हमें फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और निष्क्रियता से बचना चाहिए।
संस्कृत श्लोकों का अध्ययन करने से हमें गीता के शुद्ध ज्ञान की प्राप्ति होती है, जिससे जीवन में संतुलन, आत्मसंयम और सही दिशा मिलती है। यह हमें सिखाता है कि सफलता केवल कर्म करने में है, न कि उसके परिणाम की चिंता करने में।
प्रसिद्ध भगवद गीता श्लोक संस्कृत में अर्थ सहित – जीवन बदलने वाले श्लोक
भगवद गीता के श्लोक हमें सही दिशा दिखाते हैं और आत्मज्ञान का मार्ग प्रशस्त करते हैं। ये श्लोक हमें कठिन परिस्थितियों में धैर्य रखने और अपने कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा देते हैं।
✨ महत्वपूर्ण गीता श्लोक:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥” (भगवद गीता 2.47)
👉 अर्थ: हमें केवल अपने कर्म पर अधिकार है, लेकिन उसके फल पर नहीं। इसलिए हमें निःस्वार्थ भाव से कर्म करना चाहिए।
गीता के यह श्लोक हमें जीवन में सही निर्णय लेने और अपने कर्तव्य का पालन करने की सीख देते हैं।

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः॥
अर्थ: जो रात्रि सभी प्राणियों के लिए है, उसमें संयमी जागता है; जिसमें प्राणी जागते हैं, वह ज्ञानी मुनि के लिए रात्रि के समान है।
आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी॥
अर्थ: जैसे पूर्ण और स्थिर समुद्र में नदियाँ प्रवेश करती हैं, वैसे ही जिसमें सभी कामनाएँ प्रवेश करती हैं, वह शांति प्राप्त करता है, न कि कामनाओं का इच्छुक।
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति॥
अर्थ: जो पुरुष सभी कामनाओं को त्यागकर, स्पृहारहित, ममता और अहंकार से मुक्त होकर विचरण करता है, वह शांति प्राप्त करता है।

ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥
अर्थ: अर्जुन ने कहा: हे जनार्दन! यदि आपकी दृष्टि में ज्ञान कर्म से श्रेष्ठ है, तो हे केशव! फिर आप मुझे इस घोर कर्म में क्यों लगाते हैं?
व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे।
तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम्॥
अर्थ: आप मिश्रित वाक्यों से मेरी बुद्धि को मानो मोहित कर रहे हैं; इसलिए, निश्चित रूप से एक ही बात कहें, जिससे मैं श्रेय (कल्याण) प्राप्त कर सकूँ।
लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ।
ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्॥
अर्थ: श्रीभगवान ने कहा: हे निष्पाप! इस संसार में दो प्रकार की निष्ठा (मार्ग) पहले मेरे द्वारा कही गई थी: सांख्ययोगियों के लिए ज्ञानयोग और कर्मयोगियों के लिए कर्मयोग।

न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यं पुरुषोऽश्नुते।
न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति॥
अर्थ: मनुष्य कर्मों का आरंभ न करने से नैष्कर्म्य (कर्मबंधन से मुक्ति) को प्राप्त नहीं होता, और न ही केवल संन्यास से सिद्धि को प्राप्त करता है।
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥
अर्थ: कोई भी व्यक्ति क्षणभर भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता; क्योंकि सभी प्रकृतिज (प्रकृति से उत्पन्न) गुणों द्वारा अवश होकर कर्म करने के लिए बाध्य होते हैं।
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते॥
अर्थ: जो व्यक्ति अपनी कर्मेन्द्रियों को नियंत्रित करके मन से इन्द्रिय विषयों का चिंतन करता है, वह मूढ़ात्मा मिथ्याचारी कहलाता है।
कर्म, भक्ति और ज्ञान से जुड़े संस्कृत श्लोक – भगवद गीता का संदेश
भगवद गीता में कर्म, भक्ति और ज्ञान को जीवन का आधार बताया गया है। श्रीकृष्ण ने सिखाया कि इन तीनों के संतुलन से व्यक्ति आत्मिक शांति और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
✨ कर्म योग श्लोक:
“योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।” (गीता 2.48)
👉 अर्थ: आसक्ति त्यागकर निष्काम कर्म करो।
✨ भक्ति योग श्लोक:
“पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।” (गीता 9.26)
👉 अर्थ: प्रेम से अर्पित किया गया छोटा अर्पण भी मैं स्वीकार करता हूँ।
✨ ज्ञान योग श्लोक:
“न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।” (गीता 4.38)
👉 अर्थ: ज्ञान से पवित्र कुछ भी नहीं।
श्रीकृष्ण का संदेश: कर्म करो, भक्ति से जुड़ो और ज्ञान प्राप्त करो। यही जीवन की सच्ची राह है।

यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन।
कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते॥
अर्थ: हे अर्जुन! जो व्यक्ति मन से इन्द्रियों को नियंत्रित करके, कर्मेन्द्रियों द्वारा आसक्ति रहित होकर कर्मयोग का आचरण करता है, वही श्रेष्ठ माना जाता है।
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥
अर्थ: अपने नियत कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है; कर्म न करने से तुम्हारी शरीर यात्रा भी संभव नहीं है।
यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर॥
अर्थ: यज्ञ के लिए किए गए कर्मों के अतिरिक्त अन्य कर्म इस संसार में बंधन का कारण बनते हैं; इसलिए, हे कुन्तीपुत्र, आसक्ति से रहित होकर उस परमात्मा के लिए कर्म करो।
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्॥
अर्थ: सृष्टि के आरंभ में प्रजापति ने यज्ञ सहित प्रजाओं को उत्पन्न करके कहा, “इस यज्ञ द्वारा तुम繁वित होओ, यह यज्ञ तुम्हारी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला होगा।”
देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ॥
अर्थ: इस यज्ञ द्वारा देवताओं को संतुष्ट करो, वे देवता तुम्हें संतुष्ट करेंगे; इस प्रकार परस्पर संतुष्ट होते हुए, तुम परम श्रेय (कल्याण) को प्राप्त करोगे।
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः॥
अर्थ: यज्ञ से संतुष्ट देवता तुम्हें इच्छित भोग प्रदान करेंगे; लेकिन जो व्यक्ति उन्हें दिए बिना स्वयं भोगता है, वह चोर है।
Bhagwat Geeta Shlok in Hindi Images – सुंदर श्लोक चित्रों के साथ
भगवद गीता के श्लोक न केवल जीवन को सही दिशा में ले जाने वाले होते हैं, बल्कि इनमें आध्यात्मिक शक्ति भी होती है। Bhagwat Geeta Shlok in Hindi Images के माध्यम से आप इन प्रेरणादायक श्लोकों को चित्रों के साथ देख सकते हैं, जिससे उनका प्रभाव और अधिक गहरा हो जाता है।
✨ प्रेरणादायक गीता श्लोक:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” (गीता 2.47)
👉 अर्थ: कर्म पर ध्यान दो, फल की चिंता मत करो।
ऐसे ही और भी सुंदर भगवद गीता श्लोक चित्रों के साथ देखें और अपने जीवन में सकारात्मकता लाएँ।

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्॥
अर्थ: यज्ञ के शेष अन्न को खाने वाले संत सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं; लेकिन जो केवल अपने लिए पकाते हैं, वे पाप का भोग करते हैं।
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः॥
अर्थ: अन्न से प्राणी उत्पन्न होते हैं, वर्षा से अन्न होता है; यज्ञ से वर्षा होती है, और यज्ञ कर्मों से उत्पन्न होता है।
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्॥
अर्थ: कर्म वेद से उत्पन्न होता है, और वेद अविनाशी परमात्मा से; इसलिए सर्वव्यापी परमात्मा नित्य यज्ञ में प्रतिष्ठित है।

एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति॥
अर्थ: हे पार्थ! जो इस प्रकार स्थापित चक्र का पालन नहीं करता, वह पापमय, इन्द्रियासक्त, और व्यर्थ जीवन जीता है।
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः।
आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते॥
अर्थ: लेकिन जो व्यक्ति आत्मा में ही रमण करता है, आत्मा में ही तृप्त है, और आत्मा में ही संतुष्ट है, उसके लिए कोई कर्तव्य नहीं है।
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः॥
अर्थ: उसके लिए न किए हुए कर्म से कोई प्रयोजन है, न अकरणीय से; और न ही सभी प्राणियों में कोई उसका आश्रय है।

कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः।
लोकसंग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि॥अर्थ: जनक आदि राजर्षियों ने कर्म के द्वारा ही सिद्धि प्राप्त की थी; इसलिए, लोकसंग्रह (संसार की भलाई) के लिए भी तुम्हें कर्म करना चाहिए।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥अर्थ: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करते हैं, अन्य लोग भी वही करते हैं। वह जो प्रमाण स्थापित करते हैं, समस्त संसार उसका अनुसरण करता है।
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि॥अर्थ: हे पार्थ! तीनों लोकों में मेरा कोई कर्तव्य नहीं है, न कुछ अप्राप्त है जो मुझे प्राप्त करना हो; फिर भी मैं कर्म में ही स्थित रहता हूँ।
Best Geeta Shlok in Hindi with Meaning – श्रेष्ठ गीता श्लोक अर्थ सहित
भगवद गीता के श्लोक जीवन में सही मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ये श्लोक न केवल आध्यात्मिक ज्ञान देते हैं, बल्कि मानसिक शांति और आत्मबल भी बढ़ाते हैं। नीचे कुछ श्रेष्ठ गीता श्लोक अर्थ सहित दिए गए हैं, जो जीवन के हर पहलू में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
✨ श्रेष्ठ गीता श्लोक:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” (गीता 2.47)
👉 अर्थ: हमें केवल कर्म करने का अधिकार है, लेकिन उसके फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।” (गीता 4.7)
👉 अर्थ: जब-जब धर्म की हानि होती है, तब मैं अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए प्रकट होता हूँ।
ये Best Geeta Shlok in Hindi जीवन में प्रेरणा देते हैं और सही दिशा में आगे बढ़ने की सीख प्रदान करते हैं।

यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥अर्थ: यदि मैं सावधानीपूर्वक कर्मों में न लगा रहूँ, तो हे पार्थ! सभी मनुष्य सर्वथा मेरे मार्ग का अनुसरण करेंगे।
उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्।
सङ्करस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः॥अर्थ: यदि मैं कर्म न करूँ, तो ये सब लोक नष्ट हो जाएँगे; मैं संकरता (वर्णसंकर) का कारण बनूँगा और इन प्रजाओं का नाश कर दूँगा।
सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत।
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम्॥अर्थ: हे भारत! जैसे अज्ञानी लोग आसक्त होकर कर्म करते हैं, वैसे ही विद्वान् भी अनासक्त होकर लोकसंग्रह (संसार की भलाई) के लिए कर्म करें।
न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन्॥अर्थ: विद्वान् पुरुष को चाहिए कि कर्म में आसक्त अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम न उत्पन्न करे; अपितु स्वयं सम्यक् आचरण करते हुए, उन्हें सभी कर्मों में प्रवृत्त करे।
प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः।
अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥अर्थ: प्रकृति के गुणों द्वारा सभी कर्म सर्वथा संपन्न होते हैं; लेकिन अहंकार से मोहित आत्मा सोचती है कि ‘मैं कर्ता हूँ’।
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते॥अर्थ: हे महाबाहो! तत्वज्ञानी व्यक्ति गुण और कर्म के विभाजन को समझकर, यह जानता है कि गुण ही गुणों में प्रवृत्त हैं, इसलिए वह आसक्त नहीं होता।
FAQ – Best Geeta Shlok in Hindi with Meaning
भगवद गीता में कितने श्लोक हैं?
भगवद गीता में कुल 700 श्लोक हैं, जो महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत आते हैं।
भगवद गीता का सबसे प्रसिद्ध श्लोक कौन सा है?
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” (गीता 2.47) – यह श्लोक कर्मयोग का सबसे प्रसिद्ध उपदेश देता है।
भगवद गीता के श्लोक पढ़ने से क्या लाभ होता है?
गीता के श्लोक पढ़ने से मानसिक शांति, आत्मबल, सही निर्णय लेने की क्षमता और जीवन की दिशा को समझने में सहायता मिलती है।
क्या भगवद गीता केवल हिंदू धर्म के लिए है?
नहीं, गीता का ज्ञान सभी के लिए उपयोगी है। यह आध्यात्मिकता, नैतिकता और जीवन प्रबंधन का सार्वभौमिक ग्रंथ है।
भगवद गीता में किस प्रकार के योग बताए गए हैं?
गीता में मुख्य रूप से कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग और ध्यान योग की शिक्षा दी गई है।
निष्कर्ष – Best Geeta Shlok in Hindi with Meaning
भगवद गीता के श्लोक जीवन को सही दिशा में ले जाने वाले अमूल्य ज्ञान के स्रोत हैं। ये श्लोक हमें कर्म, भक्ति, ज्ञान और धर्म का सही अर्थ समझाते हैं। Best Geeta Shlok in Hindi with Meaning के माध्यम से हमने उन श्लोकों को साझा किया, जो आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं।
यदि आप जीवन में प्रेरणा और सही मार्गदर्शन चाहते हैं, तो भगवद गीता के श्लोक नियमित रूप से पढ़ें और उनके गहरे अर्थ को समझें। यह केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के लिए एक जीवन दर्शन है।